वहाँ!
उस छोर से फिसला था मैं,
पेड़ के पीछे की
पहाड़ी की ओर इशारा किया उसने
और एकटक घूरता रहा
पेड़ या पहाड़ी ?
असमंजस में था मैं!
हाथ नहीं छोड़ा किसी ने
न मैंने छुड़ाया
बस, मैं फिसल गया!
पकड़ कमज़ोर जो थी रिश्तों की
तुम्हारी या उनकी?
सतही तौर पर हँसता रहा वह
बाबूजी!
इलाज चल रहा है
कोई गंभीर चोट नहीं आई
बस, रह-रहकर दिल दुखता है
हर एक तड़प पर आह निकलती है।
वह हँसता रहा स्वयं पर
एक व्यंग्यात्मक हँसी
कहता है बाबूजी!
सौभाग्यशाली होते हैं वे इंसान
जिन्हें अपनों के द्वारा ठुकरा दिया जाता है
या जो स्वयं समाज को ठुकरा देते हैं
इस दुनिया के नहीं होते
ठुकराए हुए लोग
वे अलहदा दुनिया के बासिन्दे होते हैं,
एकदम अलग दुनिया के।
ठहराव होता है उनमें
वे चरवाहे नहीं होते
दौड़ नहीं पाते वे
बाक़ी इंसानों की तरह,
क्योंकि उनमें
दौड़ने का दुनियावी हुनर नहीं होता
वे दर्शक होते हैं
पेड़ नहीं होते
और न ही पंछी होते हैं
न ही काया का रूपान्तर करते हैं
हवा, पानी और रेत जैसे होते हैं वे!
यह दुनिया
फ़िल्म-भर होती है मानो उनके लिए
नायक होते हैं
नायिकाएँ होती हैं
और वे बहिष्कृत
तिरस्कृत किरदार निभा रहे होते हैं,
किसने किसका तिरस्कार किया
यह भी वे नहीं जान पाते
वे मूक-बधिर...
उन्हें प्रेम होता है शून्य से
इसी की ध्वनि और नाद
आड़ोलित करती है उन्हें
उन्हें सुनाई देती है
सिर्फ़ इसी की पुकार
रह-रहकर
इस दुनिया से
उस दुनिया में
पैर रखने के लिए रिक्त होना होता है
सर्वथा रिक्त।
रिक्तता की अनुभूति
पँख प्रदान करती है उस दुनिया में जाने के लिए
जैसे प्रस्थान-बिंदु हो
कहते हुए-
वह फिर हँसता है स्वयं पर
एक व्यंग्यात्मक हँसी।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
आदरणीया अनिता सैनी जी ! प्रणाम !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव ! स्वयं पर बितते अनुभव को व्यंग्य में लेना , कृष्ण की तरह मुस्कुराना , एक सिद्धि है !
उस दुनिया में
पैर रखने के लिए रिक्त होना होता है
बहुत सार गर्भित गीता ज्ञान को उद्घृत , प्रकट , रूपायित करती सार्थक रचना
पढ़ कर आनंद आया
अभिनन्दन !
आपका दिन शुभ हो !
जय श्री कृष्ण जी !
जय श्री कृष्ण जय श्री श्याम
जवाब देंहटाएंइस दुनिया के नहीं होते
जवाब देंहटाएंठुकराए हुए लोग
वे अलहदा दुनिया के बासिन्दे होते हैं,
एकदम अलग दुनिया के।
ठहराव होता है उनमें
वे चरवाहे नहीं होते
बहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी कृति ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (26-02-2023) को "फिर से नवल निखार भरो" (चर्चा-अंक 4643) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह,मार्मिक
जवाब देंहटाएंहवा, पानी और रेत जैसे होते हैं वे! ---- सच होते हैं निर्लिप्त से कुछ लोग, ठीक ऐसे ही जैसा आपने बताया समाज से बहिष्कृत से या समाज को बुद्ध जैसे त्यागने वाले।
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी रचना सुंदर भाव प्रवण।
वाह बहुत ही सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएं"वह हँसता रहा स्वयं पर
जवाब देंहटाएंएक व्यंग्यात्मक हँसी " स्वयं पर हंसने वाले विरले ही होते, बहुत सुंदर रचना।
बहुत सुंदर सृजन आदरणीय , जय श्रीकृष्णा ।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन
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