शनिवार, अप्रैल 29

चिट्ठी


सुरमई साँझ होले-होले

उतरने लगे जब धरती पर 

घरौंदो में लौटने लगे पंछी 

तब फ़ुर्सत में कान लगाकर 

तुम! हवा की सुगबुगाहट सुनना

 बैठना पहाड़ों के पास 

 बेचैनी इनकी पढ़ना

संदेशवाहक ने

नहीं पहुँचाए  संदेश इनके 

श्योक से नहीं इस बार तुम 

सिंधु से मिलना 

जीवन के कई रंग लिए बहती है

तुम्हारे पीछे  पर्वत के उस पार 

जहाँ उतरी थी सांध्या 

तुम कुछ मत कहना

एक गीत गुनगुना लेना 

छू लेना रंग प्रीत का

हाथों का स्पर्श बहा देना 

छिड़क देना चुटकी भर थकान

आसमान भर परवाह

प्रेम की नमी तुम पैर सिंधु में भिगो लेना।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (30-04-2023) को  "आम हो गये खास"  (चर्चा अंक 4660)   पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30-04-2023) को  "आम हो गये खास"  (चर्चा अंक 4660)   पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. वाह!! बेहद खूबसूरत पंक्तियां, बेहतरीन रचना।

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  4. खूबसूरत पंक्तियां..........

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  5. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 01 मई 2023 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता।

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  7. बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना सखी

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  8. प्रतिकात्मक बिंबों से मन की कोमल अनुभूतियों को बहुत सुंदर और हृदय स्पर्शी ढ़ंग से पिरोया है आपने प्रिय अनिता बहुत सुंदर सृजन।

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  9. वाह कितनी गहरी बात कही आपने....वाह अनीता जी...शानदार शब्‍द ..कि ...तुम कुछ मत कहना

    एक गीत गुनगुना लेना

    छू लेना रंग प्रीत का

    हाथों का स्पर्श बहा देना ....अद्भुत लेखन

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  10. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  11. 'सुरमई साँझ होले-होले
    उतरने लगे जब धरती पर
    घरौंदो में लौटने लगे पंछी
    तब फ़ुर्सत में कान लगाकर
    तुम! हवा की सुगबुगाहट सुनना
    बैठना पहाड़ों के पास
    बेचैनी इनकी पढ़ना' -
    खूबसूरती की इन्तहां है यह तो!

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