'इसलिए' 'किसलिए' मिलकर
रिश्तों को दफ़नाने के लिए
जब गहरी खाई खोदने लगे
'आप' से 'तुम' और 'तू' पर
ज़बान का लहजा अटक जाए
'तू'-'तू' के इस खेल में
'मैं' के बीज का अंकुर फूटने लगे
भावों की नदी अविरल
दिन-रात उसे सींचने लगे
तब तुम थोड़ा-सा
लाओत्से को पढ़ लेना।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर शुक्रवार 05 मई 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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सुंदर पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंमैं' के बीज का अंकुर फूटने लगे
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ।
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना सखी
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (16-05-2023) को "काहे का अभिमान करें" (चर्चा-अंक 4663) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पंक्तियां 👌
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