पानी पहचानता है / अनीता सैनी 'दीप्ति'
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एक इंसान
दूसरे इंसान को कभी नहीं रौंदता
वह स्वयं को रौंदता है
स्वयं को बाँधता है
भ्रम की रस्सी से
समय की देह पर पड़े निशान
सदियों से देख रही हूँ मैं
मानव की मौन प्रक्रिया
घट रही घटनाओं की
साक्षी रही हूँ मैं
पानी पहचानता है अपने तत्त्व को।
नदी ये शब्द
शहर से गुज़रते हुए
एक पहाड़ी से कहती है
नदी-इंसान के बीच का रहस्य खोजने
शहर की ओर दौड़ती है पहाड़ी
तभी से इंसान का नदी से नहीं
पत्थरों से प्रेम बढ़ता रहा है।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 09 जुलाई 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर सृजन
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