संताप /अनीता सैनी 'दीप्ति'
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उन्होंने कहा-
उन्हें दिखता है वे देख सकते हैं
आँखें हैं उनके पास
होने के
संतोष भाव से उठा गुमान
उन सभी के पास था
वे अपनी बनाई व्यवस्था के प्रति
सजगता के सूत कात रहे थे
सुःख के लिए किए कृत्य को
वे अधिकार की श्रणी में रखते
उनमें अधिकार की प्रबल भावना थी
नहीं सुहाता उन्हें!
वल्लरियों का स्वेच्छाचारी विस्तार
वे इन्हें जंगल कहते
उनमें समय-समय पर
काट-छाँट की प्रवृत्ति का अंकुर
फूटता रहता
वे नासमझी की हद से
पार उतर जाते, जब वे कहते-
उनके पास भाषा भी है
मैं मौन था, भाषा से अनभिज्ञ नहीं
वे शब्दों के व्यापारी थे, मैं नहीं
मुझे नहीं दिखता!
वह सब जो इन्हें दिखायी देता
नहीं दिखने के पैदा हुए भाव से
मैं पीड़ा में था, परीक्षित मौन
यह वाकया- बैल ने गाय से कहा।
विचारणीय अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ४ अगस्त २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुंदर सृजन प्रिय अनीता
जवाब देंहटाएंबेहतरीन, सार्थक और भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन 🙏
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन कुछ सोचने पर विवश करता हुआ
जवाब देंहटाएंवे शब्दों के व्यापारी थे, मैं नहीं
जवाब देंहटाएंमुझे नहीं दिखता!
वह सब जो इन्हें दिखायी देता
नहीं दिखने के पैदा हुए भाव से
मैं पीड़ा में था, परीक्षित मौन
यह वाकया- बैल ने गाय से कहा।
जितना दिखता है वही काफी है...दिखायी देना सिर्फ आँखों का काम नहीं ये भी बुद्धि पर निर्भर है...
बहुत सुन्दर सार्थक एवं चिंतनपरक सृजन।
वाह!!!
बहुत गहरी रचना … भावों को कहना भी एक कला है …
जवाब देंहटाएंसुंदर काव्य पंक्तियां
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