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शुक्रवार, सितंबर 29

तिरता फूल


तिरता फूल / अनीता सैनी 'दीप्ति'

...

घर की दीवारों से टकराते विचार 

वे पहचानने से इंकार करती हैं

आँगन भी बुझा-बुझा-सा रहता है!

मैंने कब उससे

अपनी कमाई का हिसाब माँगा है?

अंतस के पानी ने 

भावों की डंडी से रंगों का घोल बनाया 

वे वृत्तियों के साथ तिरकर

मन की सतह पर आ बैठे  

शिकायत साझा नहीं कर रहा हूँ 

अपनों से मिलने की तड़प सिसकियाँ भर रही थीं 

 कि मैं

उतावलेपन में जवानी सरहद पर भूल आया।

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 01 अक्टूबर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. वाह! खूबसूरत कविता।

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  3. वाह!प्रिय अनीता ,खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।

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  4. बेनामी2/10/23, 12:38 pm

    शानदार

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  5. मन के गहन भाव को शब्द दिए हैं ...

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  6. बेनामी8/10/23, 2:37 pm

    शानदार मार्म‍िक भाावोंसे ओतप्रोत कव‍िता...मैं

    उतावलेपन में जवानी शरहद पर भूल आया...वह अनीता जी

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  7. अंतस तक छू जाने वाली कव‍िता...वाह अनीता जी...क्या आपको पता है क‍ि चर्चामंच क्यों अपडेट नहीं हो रहा

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    1. सादर नमस्कार प्रिय दी
      आदरणीय शास्त्री अस्वस्थ हैं।
      मैं भी कुछ नाजुक दौर से गुज़र रही हूँ।
      जल्द ही हम वापस लौटेंगे।
      आपका आशीर्वाद अनमोल है।
      सादर स्नेह

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    2. अरे, ईश्वर सबकुछ जल्द ही ठीक करेगा अनीता जी, आपका स्नेहपूर्ण संबोधन हृदय को अभ‍िभूत कर देता है...राम राम

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