तिरता फूल / अनीता सैनी 'दीप्ति'
...
घर की दीवारों से टकराते विचार
वे पहचानने से इंकार करती हैं
आँगन भी बुझा-बुझा-सा रहता है!
मैंने कब उससे
अपनी कमाई का हिसाब माँगा है?
अंतस के पानी ने
भावों की डंडी से रंगों का घोल बनाया
वे वृत्तियों के साथ तिरकर
मन की सतह पर आ बैठे
शिकायत साझा नहीं कर रहा हूँ
अपनों से मिलने की तड़प सिसकियाँ भर रही थीं
कि मैं
उतावलेपन में जवानी सरहद पर भूल आया।
वाह अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 01 अक्टूबर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंवाह! खूबसूरत कविता।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह!प्रिय अनीता ,खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंशानदार
जवाब देंहटाएंमन के गहन भाव को शब्द दिए हैं ...
जवाब देंहटाएंशानदार मार्मिक भाावोंसे ओतप्रोत कविता...मैं
जवाब देंहटाएंउतावलेपन में जवानी शरहद पर भूल आया...वह अनीता जी
अंतस तक छू जाने वाली कविता...वाह अनीता जी...क्या आपको पता है कि चर्चामंच क्यों अपडेट नहीं हो रहा
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार प्रिय दी
हटाएंआदरणीय शास्त्री अस्वस्थ हैं।
मैं भी कुछ नाजुक दौर से गुज़र रही हूँ।
जल्द ही हम वापस लौटेंगे।
आपका आशीर्वाद अनमोल है।
सादर स्नेह
अरे, ईश्वर सबकुछ जल्द ही ठीक करेगा अनीता जी, आपका स्नेहपूर्ण संबोधन हृदय को अभिभूत कर देता है...राम राम
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