पूर्व-स्मृतियाँ / अनीता सैनी ’दीप्ति’
…
उन दिनों प्रेम को केवल
कैवल्य की पुकार सुनाई देती थी
उसके पास
एकनिष्ठता के परकोटे में अकेलापन था
एकांत नहीं!
मिट्टी के टीलों के उस पार
उदास साँझ को विदा करता
वह सोचता कि
प्रतीक्षा-गीत गाते-गाते क्यों रूँध जाता है
साँझ का भी कंठ?
बर्फ़ का फोहा
फफकती सांसों पर रखता
स्वयं के चुकते जाने को खुरचता
मन की शिला पर भावों के जूट को कूटकर
समय की मशाल में जलावण भरता
ढलती उम्र के निशान
देह पर दौड़ जाते सर्प से।
चिट्ठी में
प्रियतम को मरुस्थल की तपती रेत लिखता
प्रियतम हिमालय की कुँआरी हिम
दायित्व-बोध पृथ्वी की धुरी-सा घूमता
वहीं खो गए दोनों के जीवन पद-चिह्न
एक के हिमालय की बर्फ में
दूसरे के मरुस्थल की रेत में।
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 29 नवंबर 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बहुत शानदार रचना
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