सुनो तो / अनीता सैनी
२६जनवरी २०२४
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देखो तो!
कविताएँ सलामत हैं?
मरुस्थल मौन है मुद्दोंतों से
अनमनी आँधी
ताकती है दिशाएँ।
पूछो तो!
नागफनी ने सुनी हो हँसी
खेजड़ी ने दुलारा हो
बटोही
गुजरा हो इस राह से
किसी ने सुने हों पदचाप।
सुनो तो !
जूड़े में जीवन नहीं
प्रतीक्षा बाँधी है
महीने नहीं! क्षण गिने हैं
मछलियाँ साक्षी हैं
चाँद! आत्मा में उतरा
मरु में समंदर!
यों हीं नहीं मचलता है।