सुनो तो / अनीता सैनी
२६जनवरी २०२४
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देखो तो!
कविताएँ सलामत हैं?
मरुस्थल मौन है मुद्दोंतों से
अनमनी आँधी
ताकती है दिशाएँ।
पूछो तो!
नागफनी ने सुनी हो हँसी
खेजड़ी ने दुलारा हो
बटोही
गुजरा हो इस राह से
किसी ने सुने हों पदचाप।
सुनो तो !
जूड़े में जीवन नहीं
प्रतीक्षा बाँधी है
महीने नहीं! क्षण गिने हैं
मछलियाँ साक्षी हैं
चाँद! आत्मा में उतरा
मरु में समंदर!
यों हीं नहीं मचलता है।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 28 जनवरी 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता
जवाब देंहटाएंवाह! शानदार कविता👌
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह! प्रिय अनीता ,बेहतरीन भावाभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंलाजबाब सृजन
जवाब देंहटाएंवाह ! अभिनव प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
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