युद्ध / अनीता सैनी
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तुम्हें पता है!
साहित्य की भूमि पर
लड़े जाने वाले युद्ध
आसान नहीं होते
वैसे ही
आसान नहीं होता
यहाँ से लौटना
इस धरती पर ठहरना
मोगली का जंगल का राजा हो जाना जैसा है
पशु-पक्षी चाँद-सूरज और हवा-पानी
सभी उसका कहना मानते हैं
उसकी बातें सुनते हैं
दायरे में सिमटा
तुम्हारा
मान-सम्मान, मैं मेरे का विलाप व्यर्थ है
व्यर्थ है रिश्तों की दुहाई देना
व्यर्थ है
एक काया को सौगंध में बाँधना
व्यक्ति विशेष से परे
ये युद्ध
आत्माएँ लड़ती हैं
वे आत्माएँ
जो बहुत पहले
देह से विरक्त हो चुकी हैं।
जीवन हरपल युद्ध ही तो है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी अभिव्यक्ति।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २० फरवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
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