पाती / अनीता सैनी
३०मार्च २०२४
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उस दिन पथ ने
पथिक को पाती लिखी
बेमानी लिखी न झूठ
सावन-भादो के गरजते बादल
सुबह की गुनगुनी धूप लिखी
मीरा के जाने-पहचाने पदचाप
बाट जोहती आँखें
वही विष के प्याले लिखे
पनिहारिन के पायल की आवाज़
कुछ काँटे कुछ पत्थर लिखे
थोड़े फूल और थोड़ी छाँव लिखी
और लिखा
स्मृतियों का पाथेय प्रतीक्षा को
प्रेम के गहरे रंग में रंग देता है
तुम प्रमाण मत देना
क्योंकि जितनी झाँकती है प्रीत
किवाड़ों और खिड़कियों से
उतनी ही तो नहीं होती
मौन ने भी लिखे हैं कई गीत
कई कविताएँ लिखी हैं अबोलेपन ने भी।