चलन को पता है
समय की गोद में तपी औरतें
चूड़ी बिछिया पायल टूटने से
खँडहर नहीं बनती
उन्हें खँडहर बनाया जाता है
चलन का जूते-चप्पल पहनकर
घर से कोसों-दूर
सदियों तक एक ही लिबास में
भूख-प्यास से अतृप्त भटकना
तृप्ति की ख़ोज
रहट का मौन
कुएँ की जगत पर बैठ
उसका
खँडहर, खँडहर… चिल्लाते रहना
खँडहर, खँडहर…का गुंजन ही
उसे गहरे से तोड़कर बनाता है
खँडहर।
…………..
खँडहर / अनीता सैनी
१५अप्रेल २०२४
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 20 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंवाह ♥️💙
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
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