भावनाएँ / अनीता सैनी
१८जून२०२४
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ठस होती आत्मा में
भावनाएँ जब भी लौटती हैं
माथे पर
तिलिस्मी इन्द्रधनुष सजाए लौटती हैं
मानो तीरथ से लौटी हो
बखान भाव से परे
भावों में
छोटी-छोटी नदियों की निर्मलता
के साथ
उदगम में विलुप्त होने का भाव लिए लौटती हैं
पाँव में छाले, चंदन का टीका
हाथ में पंचामृत
मरुस्थल में पौधा सींचने
दौड़ती हुई आती हैं
कहती हैं-
“तुम्हारे घर के बंद किंवाड़ देखकर भान होता है
अस्त होता सूरज नहीं! हम तुम्हें डंकती हैं!!”
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 20 जून 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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सुंदर
जवाब देंहटाएंसादर वंदन
बहुत बहुत सुन्दर
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