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सोमवार, जून 24

अनुभूति


अनुभूति / अनीता सैनी 

२३जून२०२४

……

प्रकृति पर मलकियत जताने 

वाले वे सभी उसके मोहताज थे 

यह उन्हें नहीं पता था 

क्योंकि उन दिनों

वे सभी मोतियाबिंद से जूझ रहे थे 

उनके दिमाग़ की गहराई में सिर्फ़ 

दो ही प्रतिबिंब बनते  स्त्री और पुरुष 

वे उनके होने का आकलन काया से करते 

रूढ़ियाँ उन्हें उनकी जमीन के साथ 

 कदमों के आंकड़े गिनवातीं 

वहाँ सभी कुछ ऊल-जलूल अवस्था में था 

जैसे लताओं के सिरे उलझे हों आपस में 

कितने ही पुरुषों की काया में 

 स्त्रियों की आत्मा निवास कर रही थी

 और न जाने

 कितनी ही स्त्रियों के पास पुरुषों की आत्मा थी 

वे सभी स्त्री-पुरुष दुत्कारे जा रहे थे 

क्योंकि केंद्र में काया थी 

दुत्कारने का 

यह खेल सदियों से चल रहा था 

सब कुछ क्षणिक होते हुए भी 

वे नाक के साथ जात बचाने में लगे थे 

उन्होंने कहा-“हम बुद्धि के गेयता है।”

वे सभी मेरे लिए स्त्री थे न पुरुष 

वे मात्र मेरी कथा के पात्रों के चरित्र थे 

मैं स्वयं के लिए भी एक चरित्र थी 

मेरी आत्मा 

मेरी काया को पल-पल मरते देख रही थी 

और पढ़ रही थी उसका चरित्र 

भ्रम की नदी के पार उतरने 

और खोने-पाने की होड़ से परे

उन दिनों की यह सबसे सुखद अनुभूति थी।

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 26जून अप्रैल 2024को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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