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शनिवार, जुलाई 13

आह! ज़िंदगी


आह! ज़िंदगी / अनीता सैनी 

१२जुलाई २०२४

……

…..और कुछ नहीं 

वे स्वीकार्य-सीमा की मेड़ पर खड़े 

गहरे स्पर्श करते अंकुरित भाव थे 

न जाने कब बरसात का पानी पी कर 

 अस्वीकार्य हो गए 

आह! ज़िंदगी लानत है तुझ पर 

भूला देना  खेल तो नहीं 

इंतजार में हैं वे आँखें वहीं जहाँ बिछड़े थे 

बार-बार उसी रास्ते की ओर 

पैरों की दौड़ का 

ये सच भी तूने भ्रम हेतु गढ़ा  

वे नहीं लौटेंगे 

कभी नहीं लौटेंगे 

सभी कुछ जानते होते हुए भी 

मैंने 

प्रतीक्षा की बंदनवार में 

साँसों की कौड़ी जड़

स्मृतियों के स्वस्तिक 

आत्मा की चौखट पर टांग दिए हैं 

एक बार फिर तुझे सँवारने के लिए।

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 15 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. बहुत सुंदर,ह्रदय स्पर्शी रचना

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  3. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

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