गिरह / अनीता सैनी
१६ जुलाई २०२४
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गर्भ में पलता भविष्य
अतीत के
फफोलों पर लुढ़कता आँखों का गर्म पानी
तुम्हारी करुणा की कहानी कहता है
नथुनों से उड़ती आँधी
दिमाग़ के कई-कई किंवाड़ तोड़कर
वर्तमान को गढ़ती
सपनों पर पड़े निशान ही नहीं
तुम्हारे वर्चस्व की दौड़ पढ़ाती है
सांसों में फूटते गीत,भावों का हरापन
कंदराओं का शृंगार ही नहीं
तुझ में धरा को पल्लवित करता है
हे मनस्वी!
मुक्त कर दो उन तमाम स्त्रीयों को
जो झेल रही हैं गंभीर संकटकाल
तुम्हारी गिरह में…
मार्मिक आर्तनाद।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी सृजन प्रिय अनीता
जवाब देंहटाएंमार्मिक
जवाब देंहटाएंहे मनस्वी!
जवाब देंहटाएंमुक्त कर दो उन तमाम स्त्रीयों को
जो झेल रही हैं एक गंभीर संकटकाल
तुम्हारी गिरह में…
बहुत ही मार्मिक सृजन।
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंमर्म स्पर्शी सृजन प्रिय अनिता बहुत समय बाद आपको सक्रिय देखकर अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह भावों का दोहन ।
अप्रतिम सृजन।
काफी अंतराल के बाद हिंदी ब्लॉग टटोलने निकला हूँ। देख कर अच्छा लगा कि हिंदी के कॉफी ब्लॉग्स एक्टिव है और उनमें से ज्यादातर नए दिखते है। यह हिंदी ब्लॉगिंग और भाषा के सुखद भविष्य को आशान्वित करता है।
जवाब देंहटाएंलिखते रहिए.... शुभेच्छा सहित.... :)
संवेदनशील हृदयस्पर्शी सृजन
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