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गुरुवार, अगस्त 15

जीवन

जीवन / अनीता सैनी 
१३अगस्त२०२४
…..
मिट्टी बुहारती बरगद की 
बरोह-सा झूलता जीवन
मैं उस पर
मन्नतों की गाँठ बनकर ठहरा रहा 

ज्यों
प्रेमिकाओं की आँखों से बहते मनके 
सिसकियों के साथ ठहर जाते हैं सांसों पर 
ज्यों 
अवचेतन में ठहरा है अस्तित्व 
चेतना की प्रतीक्षा में 

आह! जीवन
तुझे 
सूरज का ताप 
धरती की गर्म साँसें झुलसाती रही 
फिर भी तू 
नीचे की ओर मजबूती से लटका हुआ 
एकाकीपन को जीता रहा।

7 टिप्‍पणियां:

  1. सारगर्भित, बहुत सुंदर रचना।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १६ अगस्त २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. स्वतंत्रता दिवस पर शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!!! अद्भूत रचना। बहुत गहराई है। बहुत दिनों बाद ऐसी रचना पढी। प्रत्येक पंक्तियाँ स्वयं में पूर्ण है।
    मेरा प्रणाम स्वीकार करें।

    जवाब देंहटाएं