घूँट /अनीता सैनी
२०अगस्त२०२४
.....
चाँद सुलाने आया
न सूरज जगाने
ना हीं
हवा ने कोई शोर किया
हे कान्हा!
बात सिर्फ़ इतनी-सी थी
सूखे दरख़्त के कोंपलें फूटने लगीं
वह
राहगीरों को आवाज़ देने लगा
इसी पर राणा झुंझला उठे
और कहा-
“मीरा को यातनाओं का जहर
न पिलाया जाए
वह इसकी आदी हो चुकी है।"
मैं तो मुस्कुराई भर थी।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार अगस्त 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबढ़िया।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएं