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गुरुवार, अगस्त 22

घूँट

घूँट /अनीता सैनी 
२०अगस्त२०२४
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चाँद सुलाने आया 
न सूरज जगाने 
ना हीं 
हवा ने कोई शोर किया 
 हे कान्हा!
बात सिर्फ़ इतनी-सी थी
सूखे दरख़्त के कोंपलें फूटने लगीं 
वह 
राहगीरों को आवाज़ देने लगा 
इसी पर राणा झुंझला उठे 
और कहा-
“मीरा को यातनाओं का जहर 
न पिलाया जाए 
वह इसकी आदी हो चुकी है।"
मैं तो मुस्कुराई भर थी।

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