भोर का पक्षी / अनीता सैनी
२१सितंबर२०२४
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सदियों में कभी-कभार
एक-आध ऐसी रात भी आती हैं,
जब उजाले की प्रतीक्षा में
भोर का यह पक्षी सारी रात गाता है
विरह-गीत।
प्रिय के
पदचाप नहीं सुनाई देने पर
वह पत्तों पर चिट्ठी लिखता है
तब और कुछ नहीं, बस हल्की पीड़ा
और उसकी सांसें ठंडी पड़ जाती हैं।
ऋषि-मुनियों के दिए श्राप,
एक-एक कर
उसकी आत्मा पर उभर आते हैं।
और वह
अहिल्या की तरह पत्थर हो जाती है।
वे लोग कहते हैं-
तब और कुछ नहीं!
बस,उस मौसम में वह उड़ नहीं पाता।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 25 सितंबर 2024 को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंभगवान राम के आने की प्रतीक्षा में अहिल्या ...भोर का पंछी उजाले की प्रतीक्षा में ...विरह का सही..गाता तो है रात भर गीत. आपने सुना और हमें समझाया यह संवाद है. नमस्ते.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना और प्रस्तुति साभार! आदरणीया अनीता जी
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