प्रवाह के पार /अनीता सैनी
३०सितंबर २०२४
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ये जो क़लम से कागज पर
भावों की नदियाँ बहती हैं, ये
सुखों की कहानियाँ कहती हैं,
तुमने शायद ठीक से पढ़ी नहीं।
वैसे ही जैसे
तुमने ठीक से देखा नहीं कि
मछलियाँ पानी के प्रवाह के
विपरीत नहीं तैरती,
वे अपने प्रस्थान बिंदु
उस अथाह सागर में फिर से
मिलने दौड़ती हैं
जहाँ से वे बिछड़ी थीं।
यह दृश्य विचारों का सूक्ष्म बिंदु है,
वैसे ही जैसे
दुःख की चोटी के गर्म पत्थर पर
जो घुटने मोड़ कर बैठा है,
और जो
बार-बार तलवों में जलन की पीड़ा से
उँगलियाँ उचका रहा है,
वह कोई और नहीं, सुख ही है।