छांव में छिपे रंग / अनीता सैनी
२४नवंबर २०२४
….
एक दिन तुम
गहरी नींद से जागोगे
और पाओगे
मिथ्या, कल्पना जैसा कुछ नहीं होता,
जो सभी कुछ होता है, यथार्थ होता है।
तब तुम्हें दिखेंगे
श्वास लेते स्वप्न।
नवंबर की गुनगुनी धूप
तुम्हारी पीठ पर
कई-कई कविताएँ लिखेगी।
परंतु तब तुम पढ़ना
ठंड में ठिठुरते प्रतीक्षारत पत्तों की कहानियाँ।
तुम्हारे भाव तुम्हें विचलित करेंगे,
वे प्रतीक्षा को मिथक
और
प्रीत को कल्पना कहेंगे।
तुम्हारे आस-पास तुम्हें कहीं नहीं दिखेगी
विरह की छाँव
और
वे विरहणियाँ, जो …।
तब तुम गाँव लौट जाना।
पगडंडियाँ भ्रमित करेंगी
ईर्ष्यालु काँटे पाँव को चोटिल करेंगे।
फिर भी तुम्हें
कांस से घायल हवा पुकारती हुई आएगी,
वह दिखाएगी
बरगद के नीचे बने चबूतरे को,
जहाँ
दुःख बहुतों द्वारा कुचला जाता है।
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