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सोमवार, दिसंबर 30

पथ की पुकार

पथ की पुकार / अनीता सैनी 
२८दिसंबर२०२४
तुम कभी मत कहना
कि संयुक्त परिवार टूट रहे हैं,
पुश्तैनी घर ढह रहे हैं।
जर्जर होते दरवाज़े
अब किसी का हाथ पकड़कर नहीं पूछते—
"तुम कौन हो?
कहाँ से आए हो?
और कहाँ जा रहे हो?"

मत पूछना कि घर का बड़ा बेटा
छत बनकर क्यों नहीं ठहरता।
खिड़कियाँ मौन क्यों हैं?

तुम माफ कर देना,
माफ करना आसान हो जाता है
जब पता चलता है
कि ये गलियाँ आपको इसलिए धकेल रही थीं,
ताकि आप उन रास्तों से मिल सको
जो आपको पुकारते रहे हैं।

 गहरी अनहद पुकार, एक धीमा स्वर,
जो आपकी आत्मा ने सुना हो,
आत्मा समझ को समझा सके 
 कि पथ पुकारते हैं, मंज़िल नहीं।

शनिवार, दिसंबर 21

अवश स्वप्न

अवश स्वप्न / अनीता सैनी

२१ दिसम्बर २०२४

…..

वेदना दलदल है जो 

अमिट भूख लिए पैदा होती है।

बहुत पहले यह

कृत्रिम रूप से गढ़ी जाती है,

फिर यह

स्वतः फैलने लगती है।

 अंबर-सा विस्तार 

 चाँद न तारे 

बस सूरज-सा ताप 

चेतना ऐसी की पाताल को छू ले।


एकांकीपन इसका आवरण,

धीरे-धीरे और बढ़ा देता है।

फैलाव इतना बढ़ जाता है कि

वहाँ तक किसी का हाथ नहीं पहुँचता।

न ही रस्सियाँ डाली जा सकती हैं,

और न ही लट्ठे।


और एक दिन, 

अतीत

वर्तमान से भूख मिटाने लगता है

 और वह पौधा, उसी में समा जाता है।


रविवार, दिसंबर 15

टूटे सपनों का सिपाही


टूटे सपनों का सिपाही / अनीता सैनी
१०दिसम्बर२०२४
….
न देश है, न कोई दुनिया,
न सीमा है, न ही कोई सैनिक।
कोई किसी का नागरिक नहीं, ना ही नागरिकता।

एक खालीपन, और नथुनों से दौड़ती वेदना,
कई-कई पहाड़ों को पार कर,
चोटिल अवस्था में लुढ़कती और बस
लुढ़कती ही रहती है।

कहती है—
“उसे इतने वर्षों से गढ़ा जा रहा था।”
“शुभ संकेत है इस आभास का होना।”

कहते हुए वह खिलखिलाई,
और वह गहरे में टूट जाता है।

वे दोनों एक-दूसरे की आँखों में देखते हैं,
और देखते ही रहते हैं।
वह, माता-पिता के साथ बच्चों की गिनती करता है,
बच्चों के खोए माता-पिता को ढूँढ़ता है।

बारूद के ढेर पर खड़ा बिन पैरों को उचकाए,
हथियारों की निगरानी करता है,
और भी बहुत कुछ करता है, परंतु कहता नहीं।

वे शान के खिलाफ हैं।
कहता है—
“सबसे कठिन है खोए माता-पिता को ढूँढ़ना।
वे नहीं मिलते, और फिर बच्चों को बहलाना।”

उसे हथियार चलाने आते हैं।
कहता है—
“AK-47 साथ रखता हूँ।”

वह, वह सब कुछ करता है, जो उसे कहा जाता है।
एक शांति के दूत को,
यही सब गहरे में बैठकर खाए जाता है।