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शनिवार, दिसंबर 21

अवश स्वप्न

अवश स्वप्न / अनीता सैनी

२१ दिसम्बर २०२४

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वेदना दलदल है जो 

अमिट भूख लिए पैदा होती है।

बहुत पहले यह

कृत्रिम रूप से गढ़ी जाती है,

फिर यह

स्वतः फैलने लगती है।

 अंबर-सा विस्तार 

 चाँद न तारे 

बस सूरज-सा ताप 

चेतना ऐसी की पाताल को छू ले।


एकांकीपन इसका आवरण,

धीरे-धीरे और बढ़ा देता है।

फैलाव इतना बढ़ जाता है कि

वहाँ तक किसी का हाथ नहीं पहुँचता।

न ही रस्सियाँ डाली जा सकती हैं,

और न ही लट्ठे।


और एक दिन, 

अतीत

वर्तमान से भूख मिटाने लगता है

 और वह पौधा, उसी में समा जाता है।


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