पथ की पुकार / अनीता सैनी
२८दिसंबर२०२४
…
तुम कभी मत कहना
कि संयुक्त परिवार टूट रहे हैं,
पुश्तैनी घर ढह रहे हैं।
जर्जर होते दरवाज़े
अब किसी का हाथ पकड़कर नहीं पूछते—
"तुम कौन हो?
कहाँ से आए हो?
और कहाँ जा रहे हो?"
मत पूछना कि घर का बड़ा बेटा
छत बनकर क्यों नहीं ठहरता।
खिड़कियाँ मौन क्यों हैं?
तुम माफ कर देना,
माफ करना आसान हो जाता है
जब पता चलता है
कि ये गलियाँ आपको इसलिए धकेल रही थीं,
ताकि आप उन रास्तों से मिल सको
जो आपको पुकारते रहे हैं।
गहरी अनहद पुकार, एक धीमा स्वर,
जो आपकी आत्मा ने सुना हो,
आत्मा समझ को समझा सके
कि पथ पुकारते हैं, मंज़िल नहीं।
कहाँ से आए हो?
जवाब देंहटाएंऔर कहाँ जा रहे हो
सुंदर
वंदन
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 1 जनवरी 2025 को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
नववर्ष मंगलमय हो |
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूबसूरत सृजन प्रिय अनीता
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर,भावपूर्ण !
जवाब देंहटाएं-ज्योत्स्ना
बहुत खूब 👌
जवाब देंहटाएंनव वर्ष 2025 का तेजस्वी सूर्य आपके और आपके समस्त परिजनों के लिये अनंत प्रकाश में स्वर्णिम कल्पनाओं की सम्यक् सम्पूर्ति, उत्तम स्वास्थ्य एवं सम्पन्नता लाए, इन्हीं मंगलकामनाओं के साथ आप सभी को अंग्रेजी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 🎉