सोमवार, मार्च 24

कविता

कविता-

माथे पर लगी

न धुलने वाली कालिख नहीं है,

और न ही

आत्मा का अधजला टुकड़ा है।


वह

सूखी आँखों से बहता पानी है —

कभी न पूरी होने वाली 

प्रतीक्षा है

शिव के माथे पर चमकता

अक्षत है।


गुरुर करते

वे तीन बेलपत्र हैं,

जिन पर लगा लाल चंदन

और मधु,

प्रीत की भाषा पढ़ाता है।


शब्दों के वार न तोड़ो,

वह

शिवालय के चौखट की रज़ है।



4 टिप्‍पणियां:

  1. असीमित है परिभाषा
    कविता की...
    सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २५ मार्च २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. सुंदर सृजन प्रिय अनीता !

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