तुम कह देना / अनीता सैनी
२२ मार्च २०२५
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एक गौरैया थी, जो उड़ गई,
एक मनुष्य था, वह खो गया।
तुम तो कह देना
इस बार,
कुछ भी कह देना,
जो मन चाहे, लिख देना,
जो मन चाहे, कह देना।
कहना भर ही उगता है,
अनकहा
खूंटियों की गहराइयों में दब जाता है,
समय का चक्र निगल जाता है।
ये जो मौन खड़ी दीवारें हैं न,
जिन पर
घड़ी की टिक-टिक सुनाई देती है,
इनकी
नींव में भी करुणा की नदी बहती है,
विचारों की अस्थियाँ लिए।
गहन विकल भाव
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 26 मार्च 2025 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंकहना होगा किसी न किसी को तो, हर ग़लत के विरुद्ध, वरना कोई भेद ही न बचेगा सही और गलत में
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