सोमवार, अप्रैल 14

प्रतीक्षा का अंतिम अक्षर

प्रतीक्षा का अंतिम अक्षर / अनीता सैनी
१४अप्रेल २०२५
……
और एक दिन
उसके जाने के बाद
उसकी लिखी वसीयत खँगाली गई।

कमाई —
धैर्य और प्रतीक्षा।

लॉकर नहीं कोई,
दीवारों ने मुँहज़बानी सुनाई।

समय गवाह था —
न कोई कोर्ट-कचहरी,
न कोई दावा करने वाला।

गहरी विडंबना की घड़ी थी वह...
उस एक दिन,
वे पाँव से कुचली गईं।