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सोमवार, अप्रैल 14

प्रतीक्षा का अंतिम अक्षर

प्रतीक्षा का अंतिम अक्षर / अनीता सैनी
१४अप्रेल २०२५
……
और एक दिन
उसके जाने के बाद
उसकी लिखी वसीयत खँगाली गई।

कमाई —
धैर्य और प्रतीक्षा।

लॉकर नहीं कोई,
दीवारों ने मुँहज़बानी सुनाई।

समय गवाह था —
न कोई कोर्ट-कचहरी,
न कोई दावा करने वाला।

गहरी विडंबना की घड़ी थी वह...
उस एक दिन,
वे पाँव से कुचली गईं।



5 टिप्‍पणियां:

  1. धैर्य और प्रतीक्षा कुचले जा रहे विडंबना गहन है पीड़ा मौन रहे कर ये सबकुछ सहती है , लेकिन हम समझने में गलती कर जाते है कि जीवन को पूरी ऊर्जा के साथ जीने , जिंदा होने का असली नाम , जीवन का असल धन मुद्रा या धन संपत्ति की प्रचुरता से बढ़कर कुछ और ही जिसे हम खो रहे खुली मुठ्टी से फिसलती रेत के समान ..अपनों को अपने जीवन को

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    1. बहुत सुंदर कहा आपने 💐
      हार्दिक आभार सुंदर समीक्षा हेतु।
      सादर स्नेह

      हटाएं
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 15 अप्रैल 2025 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  3. इसलिए अर्जित करो जीवन भर
    सत्कर्म सदाचार निर्भार जुटाओ
    पहले अपने मन का चैन ।
    जो अपने हैं और समझे हैं
    आँकेंगे तुम्हें ।
    शेष सब ज़रूरतों से जुड़े,
    तुम्हारा नहीं, उन्हें खलेगा
    चीजों,सुविधाओं का अभाव !
    इसलिए सावधान !

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