१८अप्रैल २०२५
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आश्वस्त करती
अनिश्चितताएँ जानती हैं!
घाटियों में आशंकाएँ नहीं पनपतीं;
वहाँ
मिथ्या की जड़ें
गहरी नहीं, अपितु कमजोर होती हैं।
वहाँ अंखुए फूटते हैं
उदासियों के।
जब उदासियाँ
घाटियों में बैठकर कविताएँ रचती हैं,
तब उनके पास
केवल चमकती हुई दिव्य आँखें ही नहीं होतीं,
अपार सौंदर्य भी होता है।
नाक, सौंदर्य का एक अनुपम उदाहरण है,
जिसकी रक्षा आँखें आजीवन करती हैं।
वे यूँ ही नहीं कहतीं—
"कविता प्यास है न हीं तृप्ति
बस
एक घूंट पानी है।"
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